Wednesday, May 6, 2020

सुरक्षित महिला , सुरक्षित समाज

फोटो: इंटरनेट  

यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:” अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। प्राचीन काल में भारतीय महिलाओं की स्थिति बहुत सम्मानीय रही है परन्तु मध्यकालीन युग से लेकर आज प्रगतिशाली युग तक महिलाओं की स्थिति में गिरावट ही आयी हैI पिछले कुछ सालों में महिलाओं के खिलाफ हो रहे वीभत्स्य और भयानक अपराधों को देख कर स्पष्ट होता है कि भारत में महिलाओं की सुरक्षा में कमी आई है यह भारतीय समाज के लिए अत्यंत चिंता का विषय है। भारतीय महिला देश की आबादी के लगभग आधी है और यह देश के विकास और वृद्धि में बराबर की सहायक हैं I
भारत के संविधान के अनुसार महिलाओं को लैंगिक भेदभाव से मुक्ति, गरिमा , समानता, और स्वतंत्रता का समान अधिकार है परन्तु यह अभी संविधान तक ही सीमित है समाज में महिला को अपने इन अधिकारों के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ती है। सामाजिक तौर पर महिलाओं को त्याग, सहनशीलता एवं शर्मीलेपन का प्रतिरूप बताया गया है. इसके भार से दबी महिलाएं चाहते हुए भी इन क़ानूनों का उपयोग नहीं कर पातींI  महिलाओं को लगातार यौन उत्पीड़न के साथ ही बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का सामना करना पड़ रहा है इसके साथ ही हिंसक ज़ुल्म, एसिड हमला, दहेज प्रथा से होने वाली मौत , मजबूर करके कराई जा रही वेश्यावृत्ति आदि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैI जबकि वास्तविकता है कि यह उस महिला की शक्ति ही  है जो हमारे समाज के भविष्य को मजबूत बनाती  हैI अगर वह सुरक्षित नहीं है तो भविष्य कभी सुरक्षित नहीं होगा.
महिला और समाज  -
किसी देश या समाज को उच्च शिखर पर ले जाने के लिए समाज के दोनों वर्ग महिला और पुरुष दोनों का विकास होना अत्यंत आवश्यक है परन्तु वर्तमान परिदृश्य में पुरुष प्रधान समाज में  महिलाओं की स्थिति क्या है किसी से छुपी नहीं है I महिला ही होती है जो वास्तविक रूप से समाज का निर्माण करती है , बच्चे को पैदा करने में भले ही माँ और बाप दोनों का योगदान हो परन्तु बच्चे को पालने का काम पुरातन काल से लेकर आज तक महिला ही कर रही है उसने अपनी जिम्मेदारी को किसी से बांटा नहीं, महिला हमारे समाज की रीढ़ और हमारे घरों की सीईओ भी होती हैं। वह हर भूमिका निभाती  हैं - मां, बेटी, बहन,बुआ , मौसी, नानी, आदि और जीवन का पहला अध्यापक माँ के रूप में महिला ही होती है I वह एक ऐसा  शिक्षक हैं जो हमारी भावी पीढ़ियों को सिखाती हैं जिंदगी कैसे जीना है कैसे दुनिया के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना है  और हर क्षेत्र में रोल मॉडल कैसे बनना है ,यह महिला ही है जो इस दुनिया को बदलने की शक्ति रखती है भले ही उसे अपना सब कुछ निछावर करना पड़ता है। घर में  खाना पकाने से लेकर बर्तन धोने ,साफ सफाई से लेकर अंदरूनी साज सज्जा तक की जिम्मेदारी महिला की ही रही है I महिलाओं को हमेशा घर में काम करने के लिए प्रशिक्षित और प्रेरित किया गया है जबकि हमें यह ध्यान रखना चाहिए  कि पुरुष अपनी जिम्मेदारी सिर्फ कार्यालय  के कार्य को समझते रहे है, अगर महिला घर में नहीं होती तो पुरुष के लिए दोनों जिम्मेदारियों को संभालना मुश्किल ही होता।
महिला समाज कि वह अंग जिसके बिना समाज कि कल्पना भी नहीं कि जा सकती और इतना महत्वपूर्ण अंग होने के बावजूद भी उसे अपने हक़ और सुरक्षा के लिए लड़ना पड़ता जिसका दहेज़ प्रथा और घरेलु हिंसा ऐसे अमानवीकृत चेहरे है जिसका शिकार तो महिला होती है परन्तु पूरा समाज इससे प्रभावित होता क्यूंकि महिला हमेशा दो परिवारो ससुराल और मायके दोनों से जुडी होती और परिवार से ही समाज बनता है I घर में अगर महिला पर हिंसा होती है तो इसका सीधा प्रभाव घर के बच्चों पर पड़ता है और धीरे धीरे बच्चे का मस्तिष्क इस हिंसा का अभ्यस्त हो जाता है और बहुत संभव है कि यही बच्चा जब बड़ा होता है तो समाज में हो रहे महिला के खिलाफ अपराध उसे विचलित नहीं करते क्योंकि वह तो यही देखते हुए बड़ा हुआ है इससे समाज में होने अपराधों को रोकना बहुत बड़ी चुनौती बन जाती हैI
आज समय बदल रहा है महिला घर से बाहर निकल रही है वह घर और कार्यालय दोनों के प्रबंधन में अपना पूरा योगदान दे रही है और कई क्षेत्रों में अपना नया मुकाम खड़ा कर रही हैंI आधुनिक भारत में महिलाएं उच्च कार्यालयों जैसे राष्ट्रपति, लोकसभा के स्पीकर, केंद्रीय मंत्री, विपक्ष के नेता, मुख्यमंत्री, राज्यपाल एवंम विभिन्न सेवाओं आदि से जुड़ रही हैं लेकिन पर्दे के पीछे है यहां तक पहुंचने में उनके द्वारा किया गया बेमिसाल संघर्ष I यह अवसर हमारे समाज में महिलाओं को बहुत कम ही मिल पा रहा है I कम अवसर के साथ ही और असुरक्षा का माहौल ज्यादा होता है घर के अंदर घरेलु हिंसा से जूझना पड़ता है तो बाहर कार्यस्थल पर होने वाले वाली छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है I
महिला शिक्षा और आर्थिक विकास
भारत में परिवारों का मुखिया महिला का होना बहुत ही कम देखा जाता है ,अधिकतर परिवारों में पुरुष ही मुखिया होता है यह दिखाता है कि हमारा समाज महिला को बराबर का हक़ नहीं देता है, हमारा देश कृषि प्रधान देश है और कृषि में ग्रामीण  महिलाओं का योगदान 70% से ज्यादा ही है , परन्तु उन्हें वह सम्मान और अधिकार नहीं मिल रहा जिसकी वह हक़दार हैंI वर्तमान सरकार ने नयी पहल करते हुए परिवार निर्धारण में महिला को ही परिवार का मुखिया मानने का फैसला किया है जिससे महिला के आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सके I  देश में पुरुष और महिला के साक्षरता अनुपात में काफी अंतर है, 2011 जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से देश में  जहां पुरुषों की साक्षरता अनुपात 82.14% है वही महिलाओं की साक्षरता का अनुपात 65.46% है I आज के वर्तमान समय में शहरों में लड़कियों को भले ही लड़को के बराबर शिक्षा का मौका मिल रहा है परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में लड़के और लड़कियों कि शिक्षा में बहुत बड़ा अंतर है I  एक तरफ जहाँ केरल (91.98%), मिजोरम  (89.40%), त्रिपुरा (83.15%) , गोवा (81.84%) आदि राज्यों में महिला साक्षरता दर देश कि कुल साक्षरता दर से भी ज्यादा है ऐसे राज्यों में महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति उच्च  है, वही राजस्थान (52.66%) , बिहार (53.33%) ,झारखण्ड (56.21%) जैसे राज्यों में महिला साक्षरता दर दयनीय है I इन राज्यों में महिला अपराधों कि संख्या अधिकतम होती है इन्हे हर तरफ से जोर-जुल्म और  सामाजिक अवहेलना का शिकार होना पड़ता है I 2015 के एक आंकङे के अनुसार 15 या उससे अधिक उम्र की महिला का शिक्षा दर 60.60% है उसी आयु वर्ग में पुरुष शिक्षा दर 81.30% है I
अपर्याप्त स्कूल सुविधा, स्वच्छता की असुविधा, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध की संख्या, महिला शिक्षकों की कमी, समाज में लैंगिक भेदभाव (लड़का-लड़की में अंतर) आदि के कारण भारत में महिला साक्षरता दर अभी भी बहुत कम है I अशिक्षा महिलाओं के विकास की सबसे बड़ी बाधक है I
महिलाओं के खिलाफ अपराध
हमारे समाज में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार की एक लम्बी सूची है जैसे बलात्कार, यौन उत्पीड़न, तस्करी, वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर करना, एसिड अटैक, बाल विवाह, घरेलू हिंसा, जबरदस्ती घरेलू काम, बाल शोषण, दहेज के कारण की जाने वाली हत्या और लिंग चयनात्मक गर्भपात आदि ऐसे अपराध है जो महिलाओं के लिए समाज को बिलुकल असुरक्षित बना दे रहे हैं इसमें कुछ के लिए तो सामाजिक और धार्मिक कुरीतिया जिम्मेदार है तो कुछ के लिए अपराध को निययंत्रित ना कर पाना सरकार की विफलता रही है I आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। हम रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों में पढ़ते देखते हैं, कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई या सामूहिक बलात्कार किया गया। यह समाज का  नैतिक पतन ही कहा जाएगा। शायद ही कोई दिन जाता हो, जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार हो।
आमतौर पर शारीरिक प्रताड़ना यानी मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसके लिए रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है. लेकिन महिलाओं और लड़कियों को यह नहीं पता कि मनपसंद कपड़े पहनने देना, मनपसंद नौकरी या काम करने देना, अपनी पसंद से खाना खाने देना, बालिग़ व्यक्ति को अपनी पसंद से विवाह करने देना या ताने देना, मनहूस आदि कहना, शक करना, मायके जाने देना, किसी खास व्यक्ति से मिलने पर रोक लगाना, पढ़ने देना, काम छोड़ने का दबाव डालना, कहीं आने-जाने पर रोक लगाना आदि भी हिंसा है, मानसिक प्रताड़ना है.
भारत में महिलाओं के लिए सुरक्षा कानून
इंसान जन्म से ही कुछ अधिकार लेकर आता है, चाहे वह जीने का अधिकार हो या विकास के लिए अवसर प्राप्त करने का. मगर इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर किए जा रहे भेदभाव, उस पर होने वाले अपराध की वजह से महिलाएं इन अधिकारों से वंचित रह जाती हैं. इसी वजह से महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने हेतु हमारे संविधान में अलग से क़ानून बनाए गए हैं I कुछ महत्वपूर्ण महिला सुरक्षा कानून जैसे बाल विवाह संयम अधिनियम 1929, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, भारतीय तलाक अधिनियम 1969, गर्भ अधिनियम की चिकित्सा समाप्ति 1971, ईसाई विवाह अधिनियम 1872, समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976, विवाहित महिला सम्पत्ति अधिनियम 1874 मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम 1986, सती आयोग (निवारण) अधिनियम 1987, राष्ट्रीय आयोग महिला अधिनियम 1990, सेक्स चयन अधिनियम 1994, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, यौन अपराध से बच्चों का निवारण अधिनियम 2012, कार्य स्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013 आदि ऐसे कानून भारतीय संविधान में समय समय पर बनाये गए जिससे  महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके I
निष्कर्ष
महिलाओं के खिलाफ अपराधों को संभालने और नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रभावी नियमों और आयोग के गठन के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध की स्थिति पिछले कुछ वर्षों में अधिक आक्रामक और भयानक रही है इससे उनके अपने देश में सुरक्षा के लिए महिलाओं के मनोबल के स्तर में कमी आई है महिलाओं की सुरक्षा उनके अपने लिए संदिग्ध हालत में है I इन सभी के लिए  हमें सरकार को दोष नहीं देना चाहिए क्योंकि महिला सुरक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी ही नहीं है, यह हर भारतीय नागरिक खासकर पुरुषों की जिम्मेदारी है, जो पूर्वाग्रह से ग्रसित है उसे अपने सोच को बदलने की जरूरत है क्योंकि समाज का निर्माण सिर्फ एकतरफा विकास से नहीं हो सकता , अगर आधी आबादी को उसके अधिकार और सुरक्षा से वंचित रखा गया तो एक आदर्श और सुरक्षित समाज का निर्माण संभव नहीं होगा I अतः जब हम अपने परिवार में महिलाओं को सम्मान वह सुरक्षित महसूस करेंगी तो परिवार और समाज सुरक्षित और खुशहाल होगा, महिला की सुरक्षा होने से ही सुरक्षित समाज की स्थापना होगी I



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